Emotional Motivational Short Story In Hindi विवेक दिल्ली के एम्स से आर्थोपेडिक सर्जन की पढ़ाई पूरी करके घर लौटा है। 2025

Motivational Short Story In Hindi

विवेक दिल्ली के एम्स से आर्थोपेडिक सर्जन की पढ़ाई पूरी करके घर लौटा है। वह मन ही मन बहुत खुश है कि वह अब डॉक्टर बन गया है। उसके मन में परिवार से मिलने की खुशी भी शामिल है। विवेक अपने परिवार के साथ नाश्ता कर रहा था, तब नाश्ता करते करते उसके पिता ने पूछा।

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आगे क्या करने का इरादा है? बेटा कहीं नौकरी करनी है या फिर अपना क्लीनिक खोलना है? अपने शहर में तुमने कुछ सोचा है?

हाँ पापा अपने शहर में एक क्लीनिक खोलने का मन है मेरा ताकि अपने शहर के लोगों की सहायता कर सकूँ।

और फिर मुझे अपने सैर से लगाव भी है। पापा और बेटे में बातचीत चल रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी। देखो तो बेटा कौन आया है? मिस्टर सिंघल ने अपने बेटे से कहा नमस्ते अंकल हाय सुजाता कैसे हैं आप लोग? आइए अंदर आ जाइए।

मिस्टर कपूर और सुजाता को देखकर विवेक ने विनम्रता से कहा, कैसे हो विवेक बहुत बहुत बधाई तुम्हें बेटा अब तुम डॉक्टर बन गए हो, जानकर बहुत खुशी हुई, तुमसे मिलने की इच्छा हुई तो मिलने चला आया मिस्टर कपूर ने कहा।

मिस्टर कपूर और मिस्टर सिंघल दोनों पड़ोसी हैं। मिस्टर सिंघल का बेटा है विवेक दोनों परिवारों के बीच में मित्रता का संबंध है। एक दूसरे का सुख दुख बांट लिया करते हैं। मिस्टर कपूर की बेटी सुजाता, जो 4 साल की उम्र से पोलियो हो गया था।

जीस कारण उसकी दोनों टाँगे कमजोर हो गई हैं, वह लंगड़ा लंगड़ा कर चलती है पर चेहरे से बहुत खूबसूरत है और बहुत प्रतिभाशाली है। साहस मन में कूट कूट कर भरा हुआ है, कभी भी किसी कठिनाई से आसानी से हार नहीं मानती।

बहुत वाली लड़की है। एक बार जो ठान लेती है, उसे करके ही दम लेती है। आइए बैठिए कैसे हैं आप लोग। सुजाता बेटा क्या हाल चाल है तुम्हारा? दोनों का स्वागत करते हुए मिस्टर सिंघल ने कहा, कैसे हैं आप सब सब कुछ कैसा चल रहा है?

अब तो विवेक डॉक्टर बन गया है। जानकर बड़ी खुशी हुई मिस्टर कपूर ने मिस्टर सिंघल से हाथ मिलाते हुए कहा, आप सुनाइए आप लोगों का सब कुछ कैसा चल रहा है? सुजाता बेटी कैसी है? मिस्टर सिंघल ने पूछा ठीक ही है सब कुछ।

पर सुजाता की चिंता लगी रहती है। मिस्टर कपूर के चेहरे पर चिंता की लकीरें थी। आप चिंता ना करें अंकल आप कहे तो मैं एक बार सुजाता की जांच कर लेता हूँ। विवेक ने विनम्रता से कहा, क्यों नहीं ये तो बहुत अच्छी बात है। लो विवेक।

आज से तुम्हारा प्रैक्टिस शुरू हो गया। हम पड़ोसी हैं, हमें एक दूसरे की मदद तो करनी ही चाहिए। मिस्टर सिंघल ने उत्साहित होते हुए कहा और क्यों ना हो बेटा जो डॉक्टर बन गया है आओ, सुजाता तुम्हारी जांच कर लेते हैं।

तब तक पापा और अंकल एक दूसरे का हाल चाल पूछ लेंगे। विवेक ने कहा, क्या तुम्हे अभी उतनी ही तकलीफ होती है? चलने में जितनी बचपन में हुआ करती थी विवेक ने सुजाता से पूछा बचपन का तो याद नहीं है, पर हाँ, चलने में तकलीफ तो होती है, वह आप स्वयं ही समझ सकते है।

आप अब डॉक्टर बन गए हैं। सुजाता ने उदास होकर कहा, यह क्या आप आप लगा रखी है तुमने मैं क्या कोई पराया हूँ या आज न भी तुम जैसे तुमने मुझे कभी देखा ही नहीं? बचपन से एक दूसरे के साथ खेलते हुए बड़े हुए हैं विवेक बचपन तो बचपन था।

अब हम दोनों बड़े हो गए हैं। मुझे एक डॉक्टर का सम्मान तो करना ही चाहिए। सुजाता ने शालीनता से कहा विवेक थोड़ा सा चिढ़ने का नाटक करते हुए कहा, तुम क्या कर रही हो? आज कल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो गई है। क्या तुम्हारी आगे क्या करने का इरादा है?

एक साथ कई सवाल दाग दिए। विवेक ने लास्ट सेमेस्टर चल रहा है। वैसे मैंने बैंक पी ओह का एग्ज़ैम भी दिया है। अगले महीने रिसाल्ट आने वाला है, देखते हैं नसीब कहाँ ले जाता है? सुजाता ने जवाब दिया, नसीब अच्छा है और अच्छा ही रहेगा।

चलो सब कुछ सही है, बस हिम्मत रखने की जरूरत है कुछ बोलियाँ लिख देता हूँ खाते रहना सब ठीक हो जाएगा। विवेक ने हिम्मत देते हुए कहा और मन ही मन सोच रहा था की तुम्हें सुजाता को पता नहीं की सुजाता तुम्हारी इतनी तकलीफ को देख कर ही मैंने ठान लिया था।

कि मुझे 1 दिन आर्थोपेडिक सर्जन बनना है, ताकि मैं तुम्हारा इलाज ठीक से कर सकूँ। सुजाता विवेक से 2 साल छोटी है। जब मैं पोलियो ग्रस्त हो गई थी, तब विवेक 6 साल का था। उसे बहुत दुख हुआ था कि सुजाता चल नहीं पाती थी।

उसके साथ खेल भी नहीं पाती थी। बचपन से ही विवेक को सुजाता बहुत अच्छी लगती थी। युवावस्था में आने के पश्चात मन ही मन कब सुजाता से प्यार करने लगा, उसे स्वयं ही नहीं पता, पर ये बात उसने राज़ ही रखी। सुजाता अपने जीवन के संघर्ष में बहुत व्यस्त हो गई थी।

पर जब कभी फुर्सत का क्षण होता तो उसे बचपन की बातें याद आती और विवेक के बारे में सोचने लग जाती। जब मुझे पोलियो हो गया था और मैं चल नहीं पाती थी तो विवेक आकर मेरे पास खड़ा रहता था और कभी कभी तो रोने लगता था कहता था।

तुम जल्दी ठीक हो जाओ, सुजाता तुम्हारे साथ खेलना है, तुम्हारे बिना खेलने में मज़ा ही नहीं आता? सुजाता की आँखें नम हो जाती है। बचपन की बातें सोचकर विवेक का व्यक्तित्व से अच्छा लगता है। वह एक अच्छा इंसान है।

और कभी मनपंख लगाकर सपनों की दुनिया में उड़ने लगता है। वह सोचती कि विवेक जैसा हमसफर जीवन में मिल जाए तो इंसान क्या नहीं कर सकता? पर वह जानती थी यह संभव नहीं हो सकता। विवेक का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है। वह एक सफल डॉक्टर है।

और वो ठहरी एक अपाहिज, एक ठंडी यहाँ भरकर वह सपनों की दुनिया से जल्दी वापस आ जाती है। विवेक का क्लीन एक अच्छा चल पड़ा है। धीरे धीरे चारों ओर उसके नाम एक कुशल आर्थोपेडिक सृजन के रूप में जाना जाने लगा। सुजाता का चयन भी बैंक के पीओ में हो गया।

और वर्तमान में वह शहर में ही पदस्थ है। सुजाता का चिकित्सकीय जिम्मेदारी अब विवेक ने ले रखी है। कुछ दिनों से विवेक इस उलझन में था कि वह पापा से बातों की शुरुआत कैसे करें? पर आज उसने साहस कर ही लिया और पापा से कहा।

पापा, मुझे आप से कुछ बात करनी है। सुजाता के बारे में पापा ने सोचा सा सुजाता के स्वास्थ्य के बारे में कुछ बातें करेगा विवेक इसलिए सहजता से पूछा क्या बात करना है? कहो सुजाता कोई पराई तो है नहीं। विवेक का मन थोड़ा हल्का हुआ, फिर कहा।

पापा, मैं सुजाता से शादी करना चाहता हूँ, बचपन से ही वह मुझे अच्छी लगती है और बड़े होने के बाद मुझे यह पता चला कि मैं उससे प्यार करने लगा हूँ, किसी से कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा जब मैं इस लायक बन जाऊंगा की शादी कर सकू उससे तब आप से बात करूँगा।

मिस्टर सिंघल की आँखें फटी की फटी रह गई और आश्चर्य चकित होकर कहा, यह कैसे संभव होगा? बेटा उसके साथ जीवन कैसे काटोगे तुम और फिर तुम्हारे साथ कोई तालमेल भी नहीं है। तुम्हारा व्यक्ति तो अलग है, उसका अलग है नहीं, नहीं, यह कैसे संभव होगा?

मिस्टर सिंघल की बातों में थोड़ी शक्ति सी आ गई थी। क्यों नहीं पापा? वह सुन्दर है, प्रतिभाशाली है, सक्षम है और सबसे बड़ी बात यह कि मैं उससे प्यार करता हूँ। आप ही कहा करते थे कि पड़ोसी के सुख दुःख में पड़ोसी को काम आना चाहिए।

इससे अच्छा मौका शायद जीवन में दोबारा नहीं आएगा। एक लड़की की जिंदगी समर जाए, क्या आप नहीं चाहते? अगर सुजाता की जगह पर मैं होता, तब आप क्या करते? विवेक ने थोड़ी दृढ़ता से कहा, विवेक की बातों में दम था, उसके पापा सोचने पर मजबूर हो गए।

और मन ही मन सोचने लग गए कि सच ही तो कह रहा है विवेक बेटे की सकारात्मक सोच के सामने पापा की शक्ति नरमी में बदल गई और अपने बेटे पर उन्हें गर्व होने लगा। आज तुमने मुझे एक पाप करने से बचा लिया। बेटा, मुझे तुम पर गर्व है।

कि तुम मेरे बेटे हो, मिस्टर सिंघल ने अपने बेटे से कहा तो क्या आप तैयार हैं? पापा? विवेक आशावारी निगाहों से पापा की ओर देख रहा था। हाँ और बेटे को गले से लगा लिया। विवेक का मन फूला नहीं समा रहा था, मन चाह रहा था।

कि पंख फैलाकर दूर नील गगन में उड़ जाए और बादलों से जाकर कहे कि सुनो बादलों मेरे मन की इच्छा पूरी होने जा रही है। मेरे साथ साथ तुम भी नाचो गाओ, खुशियां मनाओ जो इतने सालों से मन में दबी पड़ी थी, आज वह खुशी जैसे झलक कर बाहर आना चाहती है।

सुबह सुबह तैयार हो रहा था। अपने क्लिनिक जाने के लिए आईने के सामने खड़ा होकर स्वयं को निहार रहा था। आज उसे आईने में कोई नया विवेक ही नज़र आ रहा था और गुनगुना रहा था। आज मौसम बड़ा बेईमान है। आज मौसम आने वाला कोई तूफ़ान है।

आज मौसम सुजाता क्लिनिक आने वाली है। चेक अप के लिए उससे खुलकर आज बात करनी है। उसे पता चलेगा तो खुशी से नाच उठेगी। बरसों से इस दिन का इंतजार था मुझे कि सुजाता के चेहरे पर खुशी के गुलाब ऐसे उड़े।

जैसे गालों पर गुलाब खिले हो, वह सुजाता को दुखी नहीं देख सकता था। बचपन से ही आज उसकी झोली वह खुशी से भर देगा और कहेगा, सुजाता तुम मेरी हो, पर पर मैं कैसे शुरुआत करूँगा? क्या कहूंगा उसे वह समझ में नहीं आ रहा था।

सपनों की दुनिया में खोया हुआ था विवेक और उसे ये सोचने में बड़ा आनंद आ रहा था साहब क्लिनिक आ गया। ड्राइवर ने कहा तो जैसे एक झटका लगा और वह सपनों की दुनिया से बाहर आ गया। हाँ हाँ थोड़ा सा शरमा गया। वह और उतरकर क्लिनिक चला गया।

जैसे जैसे समय नजदीक आ रहा था, विवेक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। बार बार आँखें दरवाजे की ओर उठ जाती थीं। कानों को सुजाता की पगधौनी सुनने की बेसब्री से इंतजार था। हवा सुजाता के तन से सुगंध उड़ाकर ले आए और रोम रोम को महका जाए।

सब्र का बांध जैसे टूटता सा जा रहा था। सामने कुछ मरीज बैठे हुए थे पर उसकी आँखें तो सुजाता को ही ढूंढ रही थी। अपने आप पर संयम बनाकर उसने एक एक कर मरीजों को जांचना शुरू कर दिया। आज शीघ्रता से सारा कार्य समाप्त कर।

उसे सुजाता के साथ लंच पर जाना है। मैं अंदर आ सकती हूँ, किसी की मधुर आवाज कानों में आकर पड़ी और वह सकपका गया। नजरें उठाकर देखा तो सामने सुजाता खड़ी थी। ब सुजाता को देखा तो देखता ही रह गया। आज उसे ऐसा लग रहा था।

जैसे सामने कोई नई सुजाता खड़ी हो क्या होगया? किस ख्याल में खोए हो? अंदर आने की इजाजत नहीं है क्या?

सुजाता ने चुटकी लेते हुए कहा हाँ, हाँ, क्यों नहीं? तुम्हारा ही तो क्लीन हैं? आओ आओ अंदर आजाओ पूछने की क्या बात है?

विवेक शर्माते हुए हड़बड़ी में कह गया बैठ जाओ सुजाता तुम्हारी आज्ञा हो तो मरीजों को पहले देख लूँ, फिर आखिर में तुम्हारा नंबर आएगा कर लोगे ज़रा इंतजार विवेक ने शरारत भरी नजर से देखते हुए कहा मजबूरी है जब आ ही गए हैं।

दिखाकर ही जाना पड़ेगा, चाहे कितनी भी देर हो जाए, सुजाता भी पीछे क्यों रहती? उसने भी हँसते हुए कहा, चलो अब तुम्हारी बारी आ ही गई। सारे मरीजों को जांच करने के बाद विवेक ने कहा, सब कुछ ठीक है, जो गोलियां मैंने लिख कर दी थीं।

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सब खा रही हो ना या लापरवाही कर रही हो। विवेक ने सुजाता का जांच करने के बाद पूछा हाँ, हाँ खा रही हूँ, इतना विश्वास नहीं है मुझ पर मैंने तो आंख बंद कर तुम पर भरोसा कर लिया, जो भी गोलियां लिख दी सब आंख मूंद के खा रही हूँ।

सुजाता ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, इन्हीं गोलियों को आगे कंटिन्यू करो महीने तक विवेक ने बड़ी समझदारी से कहा, जैसे ही डॉक्टर साहब की आज्ञा मैं डॉक्टर साहब की आज्ञा का उल्लंघन करने का दंड जानती हूँ, सुजाता ने चुटकी ली।

घड़ी की ओर देखते हुए विवेक ने कहा, सुजाता 2:00 बज गए हैं, तुम्हे भूख नहीं लग रही है क्या? मुझे तो बहुत भूख लग रही है। अगर तुम्हे कोई आपत्ति नहीं हो तो चलो हम किसी रेस्टोरेंट में बैठकर बात भी कर लेंगे और खाना भी खा लेंगे। साथ साथ सुजाता ने कुछ नहीं कहा।

फिर सहमति में सिर हिला दिया। आज उसका भी मन कर रहा था थोड़ी देर विवेक के साथ समय बिताने का और उससे कुछ मन की बात करने का। दोनों खाने के टेबल पर बैठे हुए थे। दोनों छुप थे। विवेक मन ही मन सोच रहा था कि कहाँ से बातें शुरू करूँ।

और क्या क्या बातें करू? चुप्पी तोड़ने के लिए विवेक ने ही बातें शुरू की। सुजाता तुम्हे याद है ना? मैं कैसे रोया करता था?

बचपन में तुम्हारे सामने बचपन भी कितना भोला होता है ना हाँ सब याद है, पर अब तो हम बड़े हो गए हैं।

कुछ बड़ो जैसी बाते भी कर लेते है, जैसे तुम्हारा क्लीनिक कैसा चल रहा है? तुम्हे यहाँ पर अच्छा लग रहा है की नहीं? दिल्ली की बहुत याद तो नहीं आ रही है। मतलब दोस्तों की आंधी आंधी सुजाता ने मुस्कराते हुए कहा, सामने जो बैठी है, वह भी तो मेरी दोस्त है।

और सबसे पुरानी बचपन की तभी तो मैं यहाँ खींचा चला आया, वरना दिल्ली में ही क्लिनिक खोल लेता। विवेक ने शरारत भरी निगाहों से सुजाता को देखते हुए कहा, विवेक की बातों ने सुजाता के दिल के तारों को छेड़ दिया। बचपन से मन में दबी बड़ी भावना जैसे जागृत हो गई।

बचपन से ही मन ही मन विवेक को वह बहुत पसंद करती थी। उसके साथ खेलना, लड़ाई करना उसे बहुत अच्छा लगता था। जब वह रूठ कर बैठ जाती तो विवेक आकर उसे मनाता। फिर वह हँस देती और विवेक के साथ खेलने चली जाती।

सारी यादें उसके मन को कूदा गई और वह थोड़ी सी शर्मा गई और कहा अच्छा तो ये बात है यहाँ पर क्लिनिक खोलने का मुझे पता होता तो पहले ही मना कर देती की विवेक को लग रहा था। कुछ तो बात है सुजाता के मन में।

जो वह चाह कर भी नहीं कह पा रही है या कहने से कतरा रही है, पर उससे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने आज निर्णय कर लिया था की बात करके ही जाना है तो उसने आगे बात छेड़ दी। सुजाता क्या? मेरे मन में जो बात है, वही बात तुम्हारे मन में भी है?

सच सच बताना प्लीज़ आज झूठ मत बोलना क्या सच और क्या झूठ मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अनजान बनते हुए सुजाता ने कहा यही कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, सुजाता क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो? और विवेक बाबू को उठा।

सुजाता से कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। वह असमंजस की स्थिति में थी कि क्या जवाब दें, समझ में नहीं आ रहा था। फिर थोड़ी देर रुक कर शर्माते हुए कहा, हाँ, हाँ विवेक पर मैं डरती हूँ कि यह प्यार कहीं महंगा न पड़ जाए। सुजाता के माथे पर चिंता की लकीरें थीं।

कैसा डर सुजाता मैंने तो अपने पापा से कह दिया है कि मैं शादी करूँगा तो सुजाता से नहीं तो और किसी से नहीं करूँगा। पापा ने तो मुझे स्वीकृति भी दे दी है पर अभी मम्मी से बातें नहीं कि हैं, मम्मी से बात करनी है।

विवेक ने सुजाता को सांत्वना देते हुए कहा, पर तू मेरी परिस्थिति पर तरस खाकर तो शादी के लिए नहीं कह रहे हो, अगर ऐसा है तो मैं बिल्कुल तैयार नहीं हूँ शादी के लिए और अगर आंटी तैयार नहीं हुई तो और फिर मेरे मम्मी पापा क्या चाहते हैं?

बेबी को जानना जरूरी है। अगर आज हमने भागुथा में कोई कदम उठा लिया और कल सब लोग दुखी हो गए तो कोई खुश नहीं हो पाया तो शादी टिक पाएगी? क्या मैं नहीं चाहती कोई भी मुझ पर तरस खाये? अगर ऐसा हुआ तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी।

आगे तुम जैसा चाहते हो, सोच विचार करके ही कोई कदम उठाना चाहती हूँ अंकल आंटी आकर मेरे मम्मी पापा से इस बारे में बातें करें ताकि उनके मन में क्या है ये भी स्पष्ट हो जाए। सुजाता ने गंभीरता से कहा, सुजाता की बातें सुनकर विवेक इतना तो समझ ही गया था।

की सुजाता स्वामी मानी है, उसे कोई कमतर समझे ये उसे कतई बर्दाश्त नहीं है। पर ये भी विवेक को आभास हो गया था की सुजाता के मन में उसके लिए प्यार है। सुजाता उसे पसंद करती है। विवेक इसी बात से खुश हो गया की सुजाता उसे प्यार करती है।

तुम मुझ पर भरोसा रखो, सुजाता जो भी होगा, वे अच्छा ही होगा मैं संभाल लूँगा सब कुछ बस मेरे ऊपर एक बार विश्वास करो, तुम्हारा विश्वास मेरे लिए बहुत मायने रखता है। विवेक ने सुजाता का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, ठीक है विवेक, मुझे तुम पर भरोसा है।

पर अब लगता है हमें चलना चाहिए। मम्मी पापा मेरा इंतजार कर रहे होंगे, देर हो जाएगी तो वे चिंतित हो जाएंगे। मेरे लिए मैं उनको परेशान देख नहीं सकती। बचपन से ही उन दोनों को बहुत परेशान होते हुए देखा है मैंने अपने लिए।

सुजाता की आँखें नम हो गई। चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़कर फिर वापस आ जाऊंगा। क्लीनिक में और विवेक सुजाता का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए गाड़ी की ओर चल पड़ा। विवेक से मिलकर सुजाता घर आ गई पर उसके मन में कुछ बातें चुभ रही थीं।

विवेक मुझसे शादी करने के लिए अपने माता पिता को मनाने का प्रयास कर रहा है। ये बात उसे अच्छी नहीं लगी और उसने ये भी कहा था की पापा तो तैयार है पर माँ को अभी तैयार करना है। भला किसी की दया पर जीना वह कैसे स्वीकार कर सकती है?

इतने सालों की कठोर मेहनत के पश्चात ही तो उसने सब कुछ पाया है। वह मन ही मन सोचने लगी, अब मैं सक्षम हूँ और इसके लिए मेरे मम्मी पापा ने मेरे साथ काफी मेहनत की है। मुझे सर उठाकर आत्मसम्मान के साथ जीना सिखाया है। मेरे मम्मी पापा किसी के सामने हाथ बहलाए

मेरी जिंदगी के लिए यह नहीं हो सकता। सुजाता कहा हो तुम ऑफिस के लिए देर हो रही है, जल्दी से तैयार हो जाओ, नाश्ता तैयार है। सुजाता की मम्मी ने आवाज लगाई तो सुजाता को होश आया की ऑफिस जाना है। हाँ मम्मी।

बस में तैयार होकर आती हूँ। सुजाता उठकर तैयार होने चली गई। सुजाता को ऑफिस जाकर पता चला कि उसका प्रमोशन हो गया है और तबादला हो गया है। मुंबई में इस बात से खुश है कि किसी बड़े शहर में जाकर शायद जीवन में कुछ और सकारात्मक बदलाव आ जाए।

पर वह सोचने लगी, क्या इसके लिए मम्मी पापा तैयार होंगे? नहीं भी होंगे तो उन्हें मनाना ही पड़ेगा। उनको विश्वास दिलाना पड़ेगा कि वह इतनी कमजोर नहीं है। स्वयं का देखभाल कर सकती है उनके बिना।

सुजाता के स्वास्थ्य में पहले से ज्यादा परिवर्तन हुआ है। विवेक की देखरेख में अब वह पहले से ज्यादा चलने फिरने में स्वयं को सक्षम पा रही है। ऑफिस से लौटते वक्त विवेक के क्लिनिक में विवेक से मिलने और तबादला की खुशियां बांटने चली गई।

उसे इस तरह अचानक देखकर विवेक आश्चर्यचकित रह गया और पूछ बैठा, अरे अचानक कैसे आना हुआ? आज तो चेकउप का भी दिन नहीं है, जो भी हो पहले ये बताओ तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है? चलने फिरने में पहले से ज्यादा कंफर्टब्ल फील करती हो कि नहीं?

मैं बिलकुल ठीक हूँ, मैं तुमसे इसलिए मिलने आई हूँ क्योंकि तुम्हें एक खुशखबरी देनी है। मेरा प्रमोशन के साथ साथ तबादला हो गया मुंबई में और मैं काफी उत्साहित हूँ। नए शहर में जाकर नया ऑफिस संभालने के लिए बिलकुल एक सांस में कह गई सुजाता।

उससे खुशी संभाले नहीं बन रहा था। विवेक के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई पर फिर भी उसने हंसते हुए कहा अरे बधाई हो बधाई यह तो बहुत बड़ी खुशखबरी है। मुँह मीठा हो जाए इसी बहाने क्या कहती हो सो जाता मिठाई के लिए तो घर आना पड़ेगा विवेक।

सुजाता ने प्रसन्नता से कहा, नहीं तो मैं आ जाऊंगा, पर सुजाता तुम मुंबई में जाकर अकेली कैसे रहोगी? सब कुछ कैसे संभालोगी मैं सोच रहा था कि क्यों ना मैं भी मुंबई में कोई हॉस्पिटल जॉइन कर लूँ? दोनों को एक दूसरे का साथ मिल जाएगा।

विवेक ने चिंता जताते हुए कहा, नहीं, नहीं विवेक तुमने यहाँ पर हॉस्पिटल खोला है, शहर के लोगों की देखभाल के लिए, केवल मेरे लिए नहीं। तुम ये सब छोड़कर नहीं आ सकते मेरे साथ और तुम्हारे मम्मी पापा क्या सोचेंगे उनको मैं दुखी नहीं कर सकती।

रहा सवाल मेरे अकेले रहने का तो मैं अपने आपको संभाल सकती हूँ और फिर मेरे मम्मी पापा तो है ही मेरे लिए सोचने के लिए तुम चिंता मत करो हमेशा मैं किसी का सहारा लेकर कब तक चलती रहूंगी, पूरी ज़िन्दगी पड़ी है मेरे सामने।

और फिर मेरे मम्मी पापा हमेशा तो नहीं रहेंगे? सुजाता के स्वाभिमान को थोड़ी सी ठेस पहुंची थी, इसलिए वह धारा प्रवाह बोलती गई। सुजाता के मम्मी पापा प्रमोशन और तबादला की बात सुनकर पहले तो थोड़े चिंतित हुए पर सुजाता के आत्मविश्वास को देखकर वो लोग अस्वस्थ हो गए।

की सुजाता सक्षम है। स्वयं को संभालने के लिए सब लोग जाने की तैयारी में जुट गए हैं। मुंबई का ऑफिस नया पद और नई कुर्सी सुजाता को भा रही थी। उसके आत्मविश्वास को दोगुना कर रही थी। ऑफिस के सब लोग इतने अच्छे हैं की सुजाता को किसी बात की कोई कठिनाई नहीं हुई।

और जीस घर में रहती है। दो लड़कियों के साथ दोनों भी बहुत सहयोग कर रही है। अब सुजाता रोज़ सुबह उठकर दोनों रूम मेट्स के साथ बाकिंग पर निकल जाती है। उसे बहुत अच्छा लगता है ये सोचकर की मैं मॉर्निंग वक भी करने लगी हूँ। उसका आत्मविश्वास

दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आज सुजाता बहुत उत्साहित है क्योंकि बैंक में होने वाली वार्षिक खेल प्रतियोगिता का आज उद्घाटन है। सुजाता ने पहली बार 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया है। इसके लिए वह एक महीने से तैयारी में जुटी हुई है।

रोज़ सुबह जब सैर पर निकलती है तब एक मैदान में जाकर दौड़ने का अभ्यास करती है। प्रतियोगिता में वह कोई स्थान तो प्राप्त न कर सकी, परंतु पूरा 200 मीटर दौड़ने में सफल रही। आज उसका आत्मविश्वास और बढ़ गया है। बैंक के सहयोगियों ने उसका हौसला देखा।

तो सब चकित रह गए हैं। एक सहयोगी ने उसे 1 दिन एक कोच से मिलाया जो ऐसे लोगों को ट्रेनिंग दिया करता है। रोज़ सुबह समय निकालकर वह मैराथन की तैयारी करने जाने लगी। बेटा तुम्हारे हौसले से मैं स्तब्ध हूँ। अगले महीने मुंबई हाफ मैराथन होने वाला है।

क्या तुम उसमें पार्टिसिपेट करने के लिए तैयार हो? मैं तुम्हें तैयार करूँगा। पूछने, सुजाता से कहा जी, मैं बिल्कुल तैयार हूँ, इसमें पूछने वाली कोई बात ही नहीं है। ऐसे ही किसी छड़का मैं इंतजार कर रही थी। अपने आप को कमजोर समझना मेरे शव के खिलाफ़ है।

सुजाता ने चेक कर कहा, पूरे ज़ोर शोर से मैराथन की तैयारी चल रही है। सुजाता बहुत उत्सुक है। उसकी प्रगति को देखकर कोच भी बहुत खुश है। उसके माता पिता को जब ये बात पता चली तो पहले तो वह घबराए फिर सुजाता के अंधविश्वास को देखकर चुप हो गए।

ऑफिस में बैठे बैठे। आज सुजाता को विवेक की याद आई। कभी कभी दोनों बातें तो कर लेते हैं पर उसने अभी विवेक से मैराथन के बारे में नहीं बताया क्योंकि वे उसे सरप्राइज़ देना चाहती हैं। सोचने लगी, मेरे स्वास्थ्य सोने में विवेक का भी हाथ है।

विवेक ने ही मेरा इलाज किया था, तभी आज मैं दौड़ पा रही हूँ। सचमुच विवेक बहुत अच्छा है और वह थोड़ी सी उदास और भावुक हो गई। जल्दी से अपना काम समेट कर घर के लिए निकल पड़ी क्योंकि उसे कल मैराथन के लिए अपने आप को तैयार करना है। थोड़ी घबराहट भी हो रही है।

पर दोनों रूममेट्स और कोच के उत्साह के कारण वह संभल पायी है। अरे देखो मालती, इधर आओ देखो, सुजाता का फोटो छपा है। पेपर में मुंबई में होने वाली हाफ मैराथन में भाग लिया था। उसने लिखा है वह पूरा मैराथन दौड़ नहीं पायी।

मगर उसका हौसला देखकर लोग चकित रह गए। पत्रकारों ने उसका इंटरव्यू लिया। उसके हौसले को देखकर लोगों ने काफी बधाइयां दी हैं। अरे लड़की हो तो ऐसी आत्मविश्वास से भरी हुई कौन कहता है कि वह कमजोर है? उसने सारे लोगों के विचार बदल दिए।

मिस्टर सिंघल ने बहुत उत्साहित होकर अपनी पत्नी को आवाज लगाई। किसका फोटो छुपा है, कौन मैराथन दौड़ रहा है, क्या बोल रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आया। रसोई से बाहर आते हुए मालती ने जवाब दिया, अरे अपनी सुजाता की बात कर रहा हूँ।

ये देखो फोटो छपी है मिस्टर सिंघल ने पुनः दोहराया मालती ने सुजाता की फोटो देखकर आश्चर्यचकित नजर से अपने पति की ओर देखा और फिर फोटो की ओर देखा और कहा अरे वाह ये तो बहुत बड़ी बात हो गई। इस लड़की ने तो झंडा गाड़ दिया।

हम सबको गलत साबित कर दिया। हम तो उसे कमज़ोर समझ रहे थे। ये तो बिलकुल सेठ नहीं निकली। चलो कपूर साहब को और उनकी पत्नी को बधाई देकर आते हैं। वह बधाई के पात्र हैं, जिनकी ऐसी लड़की है। सुबह सुबह मोबाइल बज उठा तो सुजाता ने देखा विवेक का फ़ोन है।

उसने फ़ोन रिसीव कर कहा, हैलो कैसे हो? विवेक आज मेरी याद कैसे आई, कितने दिन हो गए तुमने मुझे कॉल नहीं किया या मुझसे कोई गलती हो गई या मुझसे नाराज हो, नाराज तो हूँ क्योंकि तुम इतना बड़ा काम करने जा रही थी और मुझे बताया तक नहीं।

मैं बिल्कुल नानवीग्य हूँ, तुमने मुझे इस लायक समझा ही नहीं। विवेक ने शिकायत करते हुए कहा, नहीं विवेक मुझे गलत मत समझो, मैं तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी इसलिए तुम्हें कुछ नहीं बताया। सुजाता की आवाज में नर्मी थी और प्यार भी था। कोई बात नहीं।

तुम बधाई की पात्र हो। तुमने जो कर दिखाया वह सब के बस की बात नहीं। आज तुम सबके लिए एक प्रेरणा बन चुकी हो। विवेक ने गर्भित होते हुए कहा थैंक यू विवेक मैं अकेली ये सब नहीं कर सकती थी, इसमें तुम्हारा भी हाथ है, तुमने मेरा इलाज नहीं किया होता।

तुम्हें ये सब करने के लिए सक्षम नहीं होती और फिर वह कोच अंकल जिसने मुझे हौसला दिया। कहते कहते, सुजाता बाबू खो गई और उसकी आँखें नम हो गई। तुम घर कब आ रही हो? तुमसे मिलने की बड़ी इच्छा है मिलकर बधाई देने की इच्छा है बहुत दिन हो गए तुमसे मिले हुए।

विवेक की आवाज भरा सी गई। बस अगले संडे को ही आ रही हूँ। मुझे भी उत्सुकता है सबसे मिलने की। सुजाता ने उत्साहित होते हुए कहा विवेक तुझे पता है? सुजाता की फोटो छपी है। पेपर में उसने मुंबई हाफ मैराथन में भाग लिया था।

कितनी हिम्मत वाली है वह दूसरी लड़कियों की जैसी नहीं है की ज़रा सी बात में हार मान जाए और चुपचाप बैठ जाए। बड़ी अच्छी लड़की है मालती खुश होते हुए अपने बेटे को सारी बाते बता रही थी। जैसे बेटे को कुछ पता ही नहीं किसने कहा वह हिम्मत वाली है।

और बड़ी अच्छी लड़की है ये आप कह रही है माँ आपने तो पहले कहा था की वह लड़की कमजोर है, हाथ पैर से मजबूर है, उससे शादी करने में मेरी जिंदगी खराब हो जाएगी। फिर एक दम से कैसे अपने विचार बदल दिए आपने? विवेक को मन ही मन अपने माँ पर गुस्सा आ रहा था।

जब विवेक ने अपनी माँ से सुजाता से शादी करने की बात कही थी तो माँ ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था लड़की से तेरी शादी नहीं हो सकती, तू शादी करेगा तो तेरी शादी में शामिल नहीं होंगी। बहुत दिनों तक सुजाता से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। विवेक।

सुजाता सारी बातें समझ गई थी। फिर उसने कभी इस बारे में कोई बात नहीं छेड़ी। आज माँ को ऐसा कहते हुए सुनकर उसका गुस्सा होना स्वभाविक था। मैं समझ नहीं पाई थी कि ये लड़की इतनी सशक्त है, इतनी हिम्मत बाली है, इतनी स्वाभिमान ही है।

आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है कि मैंने मना करके बहुत बड़ी गलती की है। तुम दोनों का ही दिल दुखाया है मैंने, तुम मुझे अब माफ़ करदे बेटा और मैं सुजाता से भी माफी मांग लूंगी। बेटा हम सब चलकर सुजाता को शादी के लिए मनाते हैं।

मालती के स्वर में पछतावा था और आँखों में अफसोस स्पष्ट झलक रहा था।

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